
रायपुर: छत्तीसगढ़ की राजधानी में कानून और न्याय व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त होती नजर आ रही है। राजधानी रायपुर की पुलिस न केवल अपराधियों को संरक्षण दे रही है, बल्कि बलात्कार पीड़िताओं को मानसिक रूप से प्रताड़ित कर रही है। पीड़िताओं की शिकायतें दर्ज नहीं की जा रही हैं, उनके सबूतों को नजरअंदाज किया जा रहा है और वरिष्ठ अधिकारियों के आदेशों के तहत अपराधियों पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की जा रही।
अगर पुलिस का यही रवैया रहा, तो राज्य में कानून व्यवस्था की धज्जियां उड़ती रहेंगी और बलात्कार पीड़िताओं को न्याय मिलने की उम्मीद छोड़ देनी होगी।
सवाल उठता है कि अगर पीड़िता के पास सबूत मौजूद हैं, तो पुलिस उसकी शिकायत दर्ज करने से पीछे क्यों हट रही है?
बस्तर के आदिवासी क्षेत्र से राजधानी में काम करने आई एक पीड़िता भी पिछले दो वर्षों से न्याय की आस में दर-दर भटक रही है। बलात्कार एवं कोयला तस्करी स्कैम का आरोपी निखिल चंद्राकर भले ही जेल में हो, लेकिन उसकी पत्नी तलविंदर चंद्राकर उर्फ चिक्की राजधानी में अपराध को खुलेआम अंजाम दे रही है। तलविंदर चंद्राकर ने इस पीड़िता के घर पर जबरन कब्जा कर लिया ।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि पीड़िता के पास स्पष्ट वीडियो फुटेज हैं, जिसमें तलविंदर चंद्राकर उर्फ चिक्की, इशिता चंद्राकर उर्फ हनी, स्पर्श गुप्ता, उम्मीदा बानो और अंजु मोदी द्वारा किए गए अपराधों के पुख्ता सबूत हैं। फिर भी, खम्हारडीह थाना प्रभारी इन अपराधियों पर कोई कार्रवाई नहीं कर रहे।तलविंदर चंद्राकर उर्फ चिक्की के अपराध का दायरा इतना बड़ा है की अपने साथियों मुख्तार खान एवं उम्मीदा बानो के साथ मिलकर पीड़िता के घर के बाहर सी सी टी वी कैमरा के मार्फत से चोबीस घंटे निगरानी कर उसके निजता का हनन करती है एवं उसका पीछा करती और करवाती है।
कारण?
जिले के कप्तान के ऊपर बैठे एक वरिष्ठ अधिकारि के स्पष्ट निर्देश हैं कि बलात्कारी निखिल चंद्राकर और उसकी पत्नी तलविंदर चंद्राकर उर्फ चिक्की के गिरोह के किसी भी सदस्य पर कोई अपराध दर्ज नहीं होना चाहिए। अगर कोई भी शिकायत आती है, तो उसे तुरंत वरिष्ठ अधिकारि को रिपोर्ट करने के आदेश दिए गए हैं, लेकिन एफआईआर दर्ज करने की अनुमति नहीं दी गई है।
यह स्पष्ट है कि रायपुर पुलिस अपराधियों के संरक्षण में काम कर रही है।
जब बलात्कार पीड़िताओं को न्याय नहीं मिलेगा, तो राज्य की महिलाएं अपनी सुरक्षा के लिए किस पर भरोसा करेंगी?
पुलिस बलात्कारियों और अपराधियों को संरक्षण देने के बजाय कब तक महिलाओं को मानसिक रूप से प्रताड़ित करती रहेगी?
बस्तर से राजधानी में आई इस पीड़िता का मामला यह दिखाता है कि आदिवासी समुदाय से आने वाली महिलाओं को न्याय मिलना और भी कठिन हो गया है। एक तरफ राज्य में आदिवासी मुख्यमंत्री हैं, वहीं दूसरी ओर आदिवासी महिलाओं के अधिकारों को कुचला जा रहा है।
क्या यही न्याय है?
क्या यही महिला सुरक्षा के बड़े-बड़े दावों की असलियत है?
सरकार और प्रशासन को इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए।
1) जब पीड़िता के पास पुख्ता सबूत मौजूद हैं, तो क्यों पुलिस एफआईआर दर्ज करने से बच रही है?
2) क्या छत्तीसगढ़ पुलिस पूरी तरह से भ्रष्ट हो चुकी है?
3) क्या कानून की डोर रसूखदार अपराधियों के हाथ में है?
रायपुर पुलिस की इस शर्मनाक निष्क्रियता और अपराधियों के प्रति नरमी से यह साबित हो चुका है कि कानून-व्यवस्था को ताक पर रखकर केवल सत्ता के इशारे पर काम किया जा रहा है। अगर यही स्थिति रही, तो पीड़िताओं को न्याय मिलने की कोई उम्मीद नहीं बची है और अपराधियों का मनोबल और बढ़ता रहेगा।




