रायपुर। ग्राम लाभांडी स्थित रहेजा बिल्डर के प्रोजेक्ट रहेजा अर्थ अपार्टमेंट में 200 से अधिक फ्लैट बेचे जा चुके हैं, लेकिन हैरानी की बात यह है कि किसी भी फ्लैट का नामांतरण पूर्ण नहीं बल्कि सारे फ्लैट के नामांतरण निरस्त हुए है । रजिस्ट्री के बाद नामांतरण की प्रक्रिया अत्यंत आवश्यक होती है, लेकिन यहां फ्लैट मालिकों को इस महत्वपूर्ण प्रक्रिया की कोई जानकारी नहीं दी गई।
मलिक मकबूजा जमीन पर निर्माण का गंभीर मामला
जांच में सामने आया है कि इनमें से कुछ खसरों का रिकॉर्ड आज भी मलिक मकबूजा हक के रूप में दर्ज है। मलिक मकबूजा जमीनें केवल किसानों को खेती के लिए दी जाती थीं। ऐसे भूमि पर किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य अवैध होता है, और इसे बेचना भी कानूनन अपराध है।
प्रश्न उठता है
आखिर किन आदेशों के तहत मलिक मकबूजा जमीनों की रजिस्ट्री करवाई जा रही है?भारतीय संत सनातन धर्म रक्षा संघ का कहना है कि यह पहला मामला नहीं है। संघ द्वारा पूर्व में भी ऐसी शिकायतें दर्ज की गई हैं, जिनमें मलिक मकबूजा जमीनों को नियमों की अवहेलना कर रजिस्ट्री करवाया गया। संघ प्रमुख ने बताया कि प्रशासनिक मिलीभगत के कारण किसानों के अधिकारों का हनन हो रहा है।
संघ प्रमुख की प्रतिक्रिया
भारतीय संत सनातन धर्म रक्षा संघ में रहेजा अर्थ में खरीदे हुए फ्लैट के मालिक द्वारा यह शिकायत दर्ज कराई गई है। इस पर संघ प्रमुख ने गंभीरता से संज्ञान लेते हुए मामले की गहन जांच और दोषियों पर कठोर कानूनी कार्रवाई की मांग की है। संघ प्रमुख ने पीड़ित को आश्वासन दिया है कि दोषी बिल्डर को न केवल क्षतिपूर्ति देनी होगी, बल्कि उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी सुनिश्चित कराई जाएगी।
नामांतरण प्रक्रिया में लापरवाही
रजिस्ट्री के बाद नामांतरण की प्रक्रिया एक अनिवार्य कानूनी प्रक्रिया है, जिससे संपत्ति का स्वामित्व आधिकारिक रूप से खरीदार के नाम दर्ज होता है। सामान्यत: रजिस्ट्री के 30 दिनों के भीतर नामांतरण आवेदन करना आवश्यक होता है।लेकिन लाभांडी स्थित रहेजा अर्थ में 200 से अधिक फ्लैटों का नामांतरण निरस्त हो चुका है। यह बिल्डर की लापरवाही और प्रशासनिक अधिकारियों की मिलीभगत को दर्शाता है।
रजिस्ट्री और नामांतरण में शामिल प्रमुख अधिकारी:
1. पंजीयक (Registrar): रजिस्ट्री प्रक्रिया की निगरानी करता है।
2. तहसीलदार: नामांतरण आवेदन की जांच करता है।
3. राजस्व निरीक्षक (Revenue Inspector): भूमि का सत्यापन करता है।
4. पटवारी: खसरा और खतौनी की रिपोर्ट तैयार करता है।
5. SDM (Sub Divisional Magistrate): अंतिम स्वीकृति प्रदान करता है।
नामांतरण निरस्त होने के कारण:
1. मलिक मकबूजा हक की जमीन: कानूनी रूप से बेचना वर्जित।
2. बिल्डर की चूक: आवश्यक दस्तावेजों की अनुपलब्धता।
3. प्रशासनिक मिलीभगत: भ्रष्टाचार और नियमों की अनदेखी।
4. फ्लैट खरीदारों को जानकारी का अभाव: उन्हें नामांतरण प्रक्रिया की जानकारी नहीं दी जाती।
अधिकारियों की संलिप्तता उजागर
यह मामला केवल बिल्डर की लापरवाही तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें प्रशासनिक अधिकारियों की भी गहरी संलिप्तता सामने आई है। मलिक मकबूजा हक की जमीन होने के बावजूद निम्नलिखित अधिकारियों ने बिल्डर को रजिस्ट्री में सहयोग दिया।
पंजीयक (Registrar): बिना वैध दस्तावेजों के रजिस्ट्री को मंजूरी दी।
तहसीलदार: गलत दस्तावेजों को सत्यापित किया।राजस्व निरीक्षक (Revenue Inspector): खसरा-खतौनी की अनदेखी की।
पटवारी: भूमि रिकॉर्ड में गड़बड़ी कर रिपोर्ट तैयार की।SDM (Sub Divisional Magistrate): मामले की उच्चस्तरीय जांच के बिना स्वीकृति दी।
संघ की मांग और अगली कार्रवाई
भारतीय संत सनातन धर्म रक्षा संघ द्वारा इस गंभीर मामले में शिकायत दर्ज करवाई गई है। संघ का कहना है कि पूर्व में भी राजीव नगर स्थित जीवन निकेतन सोसायटी में नामांतरण से जुड़ी शिकायतें सामने आई थीं, और अब लाभांडी के रहेजा बिल्डर के प्रोजेक्ट रहेजा अर्थ में भी वही कहानी दोहराई जा रही है।
संघ ने राजस्व विभाग और अन्य संबंधित अधिकारियों पर कठोर कार्रवाई की मांग की है। दोषी बिल्डर और जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाए, ताकि भविष्य में इस प्रकार की धोखाधड़ी दोबारा न हो।
यह मामला न केवल फ्लैट खरीदारों के साथ धोखाधड़ी है, बल्कि प्रशासनिक लापरवाही का भी जीवंत उदाहरण है। सरकार को चाहिए कि इस मामले की उच्चस्तरीय जांच करवाए और दोषियों को दंडित करे।




