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RTI सुनवाई बना डर का मंच, पीड़िता को धक्का देने पर उतारू हुआ CSP IPS अजय कुमार!

रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से एक झकझोर देने वाला मामला सामने आया है, जिसने न केवल महिला सम्मान बल्कि नागरिकों के सूचना अधिकार और पुलिस प्रशासन की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। रायपुर के सिविल लाइंस क्षेत्र में पदस्थ नगर पुलिस अधीक्षक (सीएसपी) अजय कुमार पर एक महिला आरटीआई अपीलकर्ता ने अत्यंत गंभीर आरोप लगाए हैं- जिसमें धमकी, अपमान, अभद्र भाषा, और बाहर निकालने के प्रयास तक की बात कही गई है।

पीड़िता, जो वर्ष 2022 में एक संगठित आपराधिक हमले की शिकार रही है, ने बताया कि उसने तेलीबांधा थाना द्वारा CCTV फुटेज जब्त न करने और मामले में निष्क्रियता को लेकर सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत जानकारी मांगी थी। जब जवाब नहीं मिला, तो उसने नियमानुसार प्रथम अपील सीएसपी अजय कुमार के समक्ष प्रस्तुत की। लेकिन जो होना चाहिए था – न्याय, सुनवाई और संवेदनशीलता – उसके स्थान पर मिला पुलिसिया अहंकार, असंवैधानिक भाषा और महिला के अपमान का दुस्साहस।

पीड़िता के अनुसार, आज दिनांक 08 जुलाई 2025 को जब वह नियत समय पर प्रथम अपील की सुनवाई हेतु सीएसपी कार्यालय पहुंची, तो अजय कुमार ने अत्यंत उग्र, अशालीन और भयावह तरीके से व्यवहार करते हुए उसकी बात सुनने से साफ इंकार कर दिया। उन्होंने टेबल पर हाथ पटकते हुए उग्र स्वर में कहा- “मैं क्यों सुनूं तुम्हारी बात? इस औरत को बाहर निकालो!”

यह कहकर वह अपनी कुर्सी से उठ खड़े हुए और पीड़िता को धक्का देकर बाहर निकालने के लिए उतावले हो गए। यदि पीड़िता मौके पर उपस्थित अन्य लोगों को न बुलाती, तो यह धक्कामुक्की सच में घटित हो सकती थी। इस पूरी घटना से वह स्तब्ध और भयभीत हो गईं। सीएसपी ने उसे किसी भी दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने या सुनवाई का कोई विवरण दर्ज करने का अवसर तक नहीं दिया।

यह न केवल RTI कानून का मखौल है, बल्कि एक महिला की गरिमा पर सीधा हमला है

आरटीआई अधिनियम की धारा 19 स्पष्ट रूप से कहती है कि प्रथम अपीलीय अधिकारी को अपील की निष्पक्ष सुनवाई करनी होगी। लेकिन जब स्वयं अपीलीय अधिकारी ही गुंडागर्दी, अवमानना और महिला विरोधी मानसिकता से ग्रसित हो, तो फिर कानून का अस्तित्व मात्र कागज़ों तक ही सीमित रह जाता है।

वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को सौंपी गई लिखित शिकायत

घटना के तुरंत बाद, पीड़िता ने रायपुर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक श्री लाल उमेद सिंह को एक विस्तृत लिखित शिकायत पत्र सौंपते हुए उक्त घटना की स्वतंत्र, निष्पक्ष और कठोर जांच की मांग की है। उन्होंने यह भी आग्रह किया है कि:

  • 08/07/2025 की सुनवाई की CCTV फुटेज को तत्काल प्रभाव से सुरक्षित किया जाए, जिससे पूरी घटना की सत्यता स्पष्ट हो सके।
  • प्रथम अपील की सुनवाई अब किसी अन्य निष्पक्ष और सक्षम अधिकारी के समक्ष की जाए।
  • सीएसपी कार्यालय में हर सुनवाई को ऑडियो/वीडियो रिकॉर्डिंग के अंतर्गत लाया जाए, और विशेषकर महिला पीड़िताओं के मामलों में महिला अधिकारी की उपस्थिति अनिवार्य की जाए।
  • अजय कुमार जैसे अधिकारी जो मानसिक संतुलन खो चुके हैं और पद की मर्यादा रौंदने में जरा भी संकोच नहीं करते, उन्हें तत्काल निलंबित कर विभागीय अनुशासनात्मक कार्यवाही प्रारंभ की जाए।

क्या अब भी पुलिस प्रशासन चुप रहेगा?

यह कोई मामूली मामला नहीं है। यह उस संवैधानिक प्रणाली पर खुला हमला है, जिसमें नागरिक को सूचना मांगने का हक दिया गया है। यह एक महिला को न्याय पाने के लिए प्रस्तुत होने पर दुत्कारा जाना और अपमानित किए जाने की सच्ची तस्वीर है। छत्तीसगढ़ सरकार और पुलिस महानिदेशक से अब यह पूछा जाना चाहिए।

क्या सीएसपी जैसे अधिकारी अब न्यायालय, RTI और संविधान से ऊपर हो गए हैं?

यदि इस प्रकरण में तुरंत सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो यह पूरे छत्तीसगढ़ में पीड़ितों के लिए एक खतरनाक उदाहरण बन जाएगा — कि यहां सच बोलने पर थप्पड़ नहीं, सीधा धक्का मिलता है। इस लोकतंत्र की असली परीक्षा तब होती है, जब कोई पीड़िता अकेले खड़ी होकर व्यवस्था को आईना दिखाने का साहस करती है। अब देखना यह है कि छत्तीसगढ़ प्रशासन उस आईने में देखने की हिम्मत रखता है या नहीं।

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