रायपुर। राजधानी में बागेश्वर धाम के पं. धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री के आगामी कार्यक्रम को लेकर आयोजित प्रेसवार्ता में आयोजक बसंत अग्रवाल के विवादित बयान से छत्तीसगढ़ की राजनीति में हलचल मच गई है। बसंत ने मंच से कहा कि “विधायक इनके सामने कहीं नहीं लगते” और यहां तक कि अपनी तुलना प्रदेश के मंत्रियों से करते हुए दावा किया कि जनता उन्हें किसी भी मंत्री से बड़ा मानेगी। उनका यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होते ही राजनीतिक गलियारों में तीखी प्रतिक्रियाएं शुरू हो गईं।
बसंत अग्रवाल ने सफाई देते हुए कहा कि उनका इशारा कांग्रेस के विधायक और मंत्रियों की ओर था, मगर इस सफाई से मामला शांत नहीं हुआ। कांग्रेस नेता मलकीत सिंह गेंदू ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि बसंत की इतनी “औकात” नहीं कि वे कांग्रेस के निर्वाचित प्रतिनिधियों के बारे में ऐसी टिप्पणी करें।विवाद बढ़ने पर आज रायपुर प्रेस क्लब में भारतीय संत सनातन धर्म रक्षा संघ के प्रदेश अध्यक्ष राहुल तिवारी ने प्रेसवार्ता कर बसंत पर तीखा हमला बोला। तिवारी ने कहा कि धर्म के बड़े आयोजनों की आड़ में बसंत खुद को “शासक” समझने लगे हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि भारतीय जनता पार्टी ऐसे व्यक्ति पर कार्रवाई क्यों नहीं करती, जो खुद को जनता द्वारा चुने गए विधायक और कानून बनाने वाले मंत्रियों से ऊपर मान रहा है।
राहुल तिवारी ने बसंत के पुराने विवादों को भी सामने रखा। उन्होंने याद दिलाया कि वर्ष 2018 में साजा विधानसभा के तत्कालीन विधायक लाभचंद बाफना से बसंत ने बदसलूकी की थी, जिसका वीडियो उस समय खूब वायरल हुआ था। तिवारी के अनुसार, भाजपा से टिकट न मिलने पर बसंत ने पार्टी कार्यालय के बाहर अपने समर्थकों के साथ हंगामा किया और निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा, जहां उन्हें मात्र 5700 वोट मिले जबकि नोटा को ही 5820 वोट मिले थे।तिवारी ने आरोप लगाया कि ऐसे व्यक्ति को भाजपा ने पार्टी में दोबारा शामिल क्यों किया, जबकि पहले ही उनके कृत्यों के चलते उन्हें निष्कासित किया गया था।
उन्होंने पूछा कि क्या संगठन के ऊपर खुद को समझने वाले व्यक्ति पर पार्टी कार्रवाई करने से डर रही है या कोई राजनीतिक मजबूरी है।बसंत अग्रवाल का बयान न केवल कांग्रेस बल्कि भाजपा के भीतर भी असहजता पैदा कर रहा है। भाजपा नेताओं ने भले ही सार्वजनिक तौर पर कुछ न कहा हो, लेकिन अंदरखाने नाराज़गी की चर्चा तेज़ है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले दिनों में यह मुद्दा प्रदेश की राजनीति को और गर्मा सकता है, खासकर तब जब बागेश्वर धाम का कार्यक्रम नजदीक है और धार्मिक भावना के साथ राजनीतिक समीकरण भी जुड़े हुए हैं।




