रायपुर/ गरियाबंद। बिल्डरों ने प्रदेश में जितने भी कोटवारी और घास जमीन था उसे सुनियोजित तरीके से अपने आप को सरकारी कोटवार घोषित कर सारे कोटवारी जमीनों को अपने नाम करवा लिए। अब सरकार के पास जनहितैषी योजना सरकारी अस्पताल, स्कूल, सामुदायिक भवन, खेल मैदान के लिए जमीन नहीं है। जिसका खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है। राजधानी के विकास में बाधक बने बिल्डरों को सत्ता पक्ष और विपक्ष का अघोषित संरक्षण मिला हुआ है जिसके कारण कसी बी पार्टी की सरकार बनती है बिल्डर जहां कही भी बिल्डिंग तानने लग जाते है। जबकि उस जमीन पर आमनागरिकों का हक होता है, जहां जनहित की योजना के लिए भवन बनाया जा सके। भाजपा सरकार ने पूर्ववर्त्ती कांग्रेस सरकार के सरकारी जमीन पर अवैध कब्जे को वैध करने के नियम में संशोधन कर सरकारी जमीन पर कब्जेदारों को बेदखल करने का फैसला लिया है। इस आदेश ने बिल्डरों में खलबली मचा दी है।
यूपी -बिहार औऱ् मध्यप्रदेश के तत्कालीन बिल्डरों ने सरकारी घास औऱ् कोटवारी भूमि पर गिद्ध? की तरह नजर गड़ाए रहे। जैसे ही राज्य अलग हुआ और सरकार का गठन हुआ सरकारी राजस्व विभाग के अभिलेखों में जमकर हेराफेरी कर राजस्व अभिलोखों में दर्ज रकार्ड में आग लगवाकर सारे रिकार्ड में दर्ज घास और कोटवारी भूमि पर मिलजुल कर बल्डरों ने बंदरबांट कर लिया । अब सरकारी रिकार्ड में राजस्व विभाग के अधीन न तो कोटवारी भूमि बची है औऱ् न ही घाम भूमि बची है। इस खेल में बड़े बड़े रसूखदार राजनेता से लेकर अधिकारियों की भागीदारी रही है। सरकार के निर्देशानुसार बिल्डरों के कब्जे में कोटवारी जमीन को दबा रखा है उसे वापस राजस्व हल्के में दर्ज करने की कवायद आज तक पूरी नहीं हो पाई है।
गौरतलब है कि दो दिन पहले ही देवभोग तहसीलदार चितेश देवांगन ने एसडीएम कोर्ट से मिले निर्देश के परिपालन में देवभोग तहसील में बिक्री हो चुके 94.45 हेक्टेयर सेवा भूमि से क्रेताओं का नाम हटा कर राजस्व रिकार्ड में वापस सेवा भूमि दर्ज करने की कार्रवाई किया है. साथ ही सेवा भूमि के बी वन में इसे अहस्तांतरणीय दर्ज किया है ताकि भविष्य में इसकी बिक्री ना हो सके. तहसीलदार देवांगन ने बताया की एसडीएम कोर्ट से मिले निर्देश के बाद 38 गांव के कोटवारों द्वारा 184 खंडों में विक्रय किए गए भूमि से क्रेताओं का नाम विलोपित किया गया है. मामले में एसडीएम तुलसी दास मरकाम ने बताया की शासन से जारी निर्देश के आधार पर पिछले 7 माह पहले मामला दर्ज कर सुनवाई किया गया. क्रेताओं के नाम विलोपित होने के साथ स्वमेव रजिस्ट्री शून्य घोषित हो गई है. उच्च कार्यलय के निर्देश पर आवश्यक हुई तो शासन के निर्देश पर वाद दायर भी किया जायेगा. 2022 में हाईकोर्ट के निर्णय के बाद राज्य शासन ने कोटवारों को मिली सेवा भूमि की बिक्री मामले में संज्ञान लेना शुरू कर दिया था.विक्रय जमीन को वापसी की यह कार्रवाई पूरे प्रदेश में चल रही है। गौरतलब है कि गरियाबंद जिले के 6 तहसील में बेचे गए 300 हेक्टेयर से ज्यादा रकबे की वापसी सेवा भूमि के खाते में किया गया है. जिला भू अभिलेख अधिकारी अर्पिता पाठक ने भी इसकी पुष्टि किया है। जिन लोगों ने कोटवारों को सरकार अथवा मालगुजारों द्वारा दी गई सेवा भूमि अथवा मालगुजारी भूमि को कोटवारों से खरीदी की है, उनके लिए खबर बुरी है। एक जिले में ये नियम लागू होने के बाद संभवत: सभी जिलों में लागू होगा तो राजधानी के भी नामी गिरामी बिल्डर चपेट में आएंगे जिन्होंने कोटवारी जमीन पर बड़ी बड़ी बिल्डिंग तान रखे हैं। अब सरकार ने ऐसी कोटवारी जमीन की खोज शुरू कर दी है, जिसे कोटवारोंं ने दूसरों को बेच दी थी। सरकार ने कलेक्टर को बिक चुकी कोटवारी जमीन की जानकारी इकट्ठा करने तथा ऐसी भूमि की रजिस्ट्री निरस्त करने के निर्देश दिए है।
कोटवारों को पूर्व में सरकार द्वारा उनकी सेवा के बदले जीवनयापन करने के लिए जमीन दी गई है, वहीं कुछ मालगुजारों ने भी जमीन दी थी। यह जमीन वास्तव में उन्हें उनके सेवा के बदले दी गई थी, इसीलिए उसे सेवा भूमि ही कहा जाता है। इस सेवा भूमि को बेचने का हक उन्हें नहीं दिया गया था, क्योंकि कोटवार के बदलने पर दूसरे कोटवार को वह जमीन हस्तांतरित होती। लेकिन वर्ष 2001 में ऐसी जमीन जिसे 1950 के पूर्व कोटवारों को मालगुजार या सेवा भूमि के रूप में प्राप्त हुई थी उस पर हाईकोर्ट ने कोटवारों को भू स्वामी हक दे दिया। जिसे 2011 में निरस्त कर दिया गया। 2014 में हाईकोर्ट ने फिर से भूमि स्वामी हक दे दिया। इसके बाद कोटवारों ने सरकारी जमीन को बेचना शुरू कर दिया।
तब ये शर्तें भी लगाई थीं, यह भी स्पष्ट किया गया था कि संहिता 158 के अनुसार जिसका हक शासन ने दिया है, उसका हस्तांतरण दस वर्ष तक नहीं किया जा सकता है। कोटवारी जमीन को बेचने के लिए कलेक्टर की अनुमति अनिवार्य होगी। कोटवारों को दी गई सेवा भूमि हक में अनिवार्य रूप से अहस्तांतरणीय दर्ज किया जाएगा। अब नए आदेश में यह कहा गया है राजस्व एवं आपदा प्रबंधन छग शासन के सचिव ने सभी कलेक्टर को जारी पत्र में स्पष्ट किया है कि कितने कोटवारों को कितनी जमीन का भूमि स्वामी हक दिया गया है। कितने कोटवारों द्वारा कितनी जमीन बेच दी गई है। कोटवारों द्वारा बेची गई जमीन के दस्तावेज रजिस्ट्रार कार्यालय से लेना होगा। जिन कोटवारों के नाम पर जमीन भूमि स्वामी दर्ज किया गया है, उसे सेवा भूमि दर्ज करना होगा। खरीदारों को अवैध खरीदी व अवैध नामांतरण के विरूद्ध नोटिस जारी करना होगा और उनके कब्जे से जमीन को वापस लेने की कार्रवाई की जाएगी। यदि क्रेता जमीन को वापस देने अथवा सरकार के निर्देश का पालन नहीं करता है तो सरकार सिविल वाद दायर करेगी।




