रायपुर। सत्ता का रसूख, राजनीतिक पद का दुरुपयोग और आम नागरिक के साथ खुलेआम ठगी—ऐसा ही एक चौंकाने वाला मामला राजधानी रायपुर से सामने आया है, जहाँ स्वयं को भारतीय जनता पार्टी का प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य बताने वाले शशांक रजक पर एक व्यापारी से ₹4 लाख की ठगी, गाली-गलौज, और जान से मारने की धमकी देने का सनसनीखेज आरोप लगा है।जानकारी के अनुसार, सुंदर नगर निवासी शशांक रजक पिता श्री अशोक रजक ने दिनांक 16 नवम्बर 2024 को रायपुर के व्यवसायी संजय से संपर्क कर कहा कि उनके पास एक सरकारी हाउसकीपिंग टेंडर ₹10 करोड़ का आया है, जिसमें निविदा जमा करने के लिए तत्काल राशि की आवश्यकता है।
उन्होंने प्रस्ताव रखा कि यदि यह कार्य उन्हें मिल गया तो वे संजय को 10% हिस्सेदारी देंगे।शशांक रजक ने अपने प्रभावशाली राजनीतिक परिचय और भाजपा के पद का हवाला देते हुए संजय को विश्वास में लिया और तीन किस्तों में कुल ₹4,00,000 (चार लाख रुपए) हड़प लिए पहली किश्त: ₹50,000 (UPI ऑनलाइन ट्रांजैक्शन)दूसरी किश्त: ₹2,00,000 (नकद)तीसरी किश्त: ₹1,50,000 (नकद)शशांक ने यह स्पष्ट वादा किया कि यदि टेंडर स्वीकृत नहीं हुआ, तो वे संपूर्ण राशि को 20 नवम्बर 2024 तक दुगना कर लौटाएंगे। लेकिन न तो कोई सरकारी कार्य मिला और न ही एक पैसा लौटाया गया।जब पीड़ित ने कई बार फोन कर रकम की मांग की तो शशांक रजक का असली चेहरा सामने आ गया। उन्होंने न सिर्फ फोन पर मां-बहन की अश्लील गालियाँ दीं एवं जान से मारने की धमकी देते हुए कहा “जहां जाना है जा… पुलिस हो या मीडिया, कोई मेरा कुछ नहीं कर सकता। सरकार हमारी है, शिकायत करके भी देख ले, एक पैसा नहीं मिलेगा!”इतना ही नहीं, शशांक रजक ने पीड़ित का मोबाइल नंबर ब्लॉक कर दिया और राजनीतिक दबदबे की धौंस दिखाकर पूरे मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की।
शशांक रजक भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य हैं—ऐसे में यह मामला केवल व्यक्तिगत ठगी नहीं बल्कि लोकतंत्र,सत्ता-नैतिकता और जनविश्वास पर हमला है।
पीड़ित ने अब मामले की शिकायत पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों से करने की ठानी है और स्पष्ट किया है और मीडिया के समक्ष सबूतों के साथ पूरा मामला उजागर करेगा।
इस घटना ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या सत्ता में बैठे लोगों के लिए कानून बौना हो चुका है? क्या आम आदमी के पैसे और सम्मान की कोई कीमत नहीं? यह मामला भाजपा की छवि पर भी गहरा प्रश्नचिह्न खड़ा करता है, यदि समय रहते संगठनात्मक कार्रवाई नहीं की गई तो इसकी राजनैतिक कीमत चुकानी पड़ सकती है।




